लक्ष्मी श्रीसूक्त पाठ

इस स्त्रोत में इन्द्रदेव द्वारा अखण्ड लक्ष्मी की प्राप्ति के लिये प्रार्थनाकी गयी है। इस स्त्रोत के पाठ करने से अषुभ ग्रहों के कारण, घर में रूपया का अभाव, धन आता है, रूकता नहीं, दुकान, या फैक्ट्री में लाभ न होन, धन के अभाव में ग्रह कलेष का निवारण भी लक्ष्मी स्त्रोतम के प्रतिदिन पाठ करने से समस्त बाधाऐं दूर होकर सुख समृद्धि यष की प्राप्ति है। इस स्त्रोत का पाठ इन्द्रदेव ने लक्ष्मी की प्रसन्नता हेतु किया जिसके पाठ से श्री महालक्ष्मी ने प्रसन्न हो अखण्ड राज लक्ष्मी का वरदान दिया था। अतः जीवन में इस पाठ का करना या विद्वान ब्राह्मण से कराने पर व्यक्ति धनबान होकर समस्त बाधाओं से मुक्त हो जाता है। यह संख्या 1100 या 11000 बार होना चाहिए। इसका वर्णन ऋग्वेद में मिलता है।

शुभमुहूर्त:
गुरूवार का दिन माता लक्ष्मी की आराधना का दिन होता है। गुरूवार का दिन माता लक्ष्मी का पूजन, स्तोत्र पाठ और मंत्रोच्चारण से व्यक्ति का कल्याण होता है और सुख समृद्धि की प्राप्ति होतh है।

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं त्रिभुवन महालक्ष्म्यै अस्मांक दारिद्र्य नाशय प्रचुर धन देहि देहि क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ ।“ नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते। शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।। नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयंकरि। सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।। सर्वज्ञे सर्ववरदे देवी सर्वदुष्टभयंकरि। सर्वदु:खहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।। सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि। मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।। आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि। योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।। स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे। महापापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।। पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणी। परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।। श्वेताम्बरधरे देवि नानालंकारभूषिते। जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।। महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं य: पठेद्भक्तिमान्नर:। सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा।। एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्। द्विकालं य: पठेन्नित्यं धन्यधान्यसमन्वित:।। त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्। महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा।।

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