भैरव मंत्र जाप

काशी के कोतवाल उज्जैन के अधीश्वर , जो चराचर को जीवन तथा मृत्यु प्रदान करने वाले भगवान श्री ” कालभैरव ” जी को हम कोटी कोटी प्रणाम करते हैं ।

भगवान काल भैरव स्वयं भूः शंकर जी हैं , जिन्होंने माता शक्ति वैष्णों देवी से हठ ( वैर ) किया था , तव जम्मू- स्थित त्रिकुटा पर्वत पर “” वाणगंगा “” उत्पन्न करने के उपरांत माता ने इनका शर धड़ से अलग कर दिया ।

भैरव जी ने जब अंतः करुणा से भगवती की आराधना की तो माँ जगदंबा ने इनको दर्शन दिए तथा अपनी परिक्रमा के साथ भैरव जी की भी परिक्रमा एवं अपने समस्त पूजन तथा अनुष्ठान में सहभागी का वरदान देकर अंतर ध्यान हो गईं ।

अतः माता के पूजन के साथ साथ भैरव जी का भी पूजन अनिवार्य है ,भैरव जी की आराधना राजसी , तामसी , तथा तानसी बताई गई है ,विशेषकर सात्विक पूजा-पाठ का ज्यादा अनुमोदन ( महत्व ) है , भैरव जी की साधना करने से काल कभी आपके समीप नहीं आ सकता , तथा अंत समय स्वयं भगवान महाकाल भैरव आते हैं , भैरव जी की साधना करने से साधक को यश , वैभव , धन , आरोग्य , समृद्धि आदि की प्राप्ति होती है , तथा साधक वर्तमान , भूत , भविष्य , का ज्ञाता हो जाता है एवं अष्ट सिद्धियों को अपने वश में कर लेता है ।

भैरव जी की साधना अति पवित्र आचरण से की जाती है , क्योंकि तनिक मात्र त्रुटी होने पर इनकी साधना में ” क्षमा ” का कोई स्थान नहीं है

काल भैरव जी की आराधना काले वस्त्र धारण करके की जाती है ,तथा इनके मंत्र का जाप रुद्राक्ष की माला से सर्वोत्तम माना गया है । काल भैरव शिव का ही स्वरूप हैं। इसलिए शिव की आराधना से पहले भैरव उपासना की जाती है। उनकी साधना से समस्त दुखों से छुटकारा मिलता है।

जिंदगी में हर तरह के संकटों से मुक्ति के लिए भैरव आराधना का बहुत महत्व है।खास तौर पर काल भैरवाष्टमी के दिन भैरव के मंत्रों का प्रयोग कर व्यापार-व्यवसाय, शत्रु पक्ष से आने वाली परेशानियां, विघ्न-बाधाएं, कोर्ट-कचहरी तथा निराशा आदि से मुक्ति पाई जा सकती है। जिंदगी में हर तरह के संकटों से मुक्ति के लिए भैरव आराधना का बहुत महत्व है।

खास तौर पर काल भैरवाष्टमी के दिन भैरव के मंत्रों का प्रयोग कर व्यापार-व्यवसाय, शत्रु पक्ष से आने वाली परेशानियां, विघ्न-बाधाएं, कोर्ट-कचहरी तथा निराशा आदि से मुक्ति पाई जा सकती है।

ऊँ देवराज सेव्यमानपावनांघ्रिपंकजं ,व्यालयज्ञसूत्रमिन्दु शेखरं कृपाकरम् ।
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं ,काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ।।

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